भारत को एक समय सोने की चिड़िया कहां जाता था, भारत विश्व के सबसे अमीर देशों में से एक हुआ करता था | भारत को तमाम बाहरी आक्रमणकारियों ने लुटा और रही सही कसर अंग्रेजों ने पूरी करने की कोशिश की थी, लेकिन भारत में आज भी ऐसी कई जगह है, जहां छिपे हुए खजाने का आज भी जीकर चलता हैं | कहां जाता है कि इन खजानों की रक्षा देवीय शक्तियां करती है और उन खजानों को कोई नहीं ले जा सकता हैं |
पद्मनाभस्वामी मंदिर के तहखाने, केरल :- तिरुवंतपुरम, केरल के श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति मिली जब जून 2011 में इसके तहखानों को खोला गया | अधिकारी इस मंदिर के अंदर का दृश्य देखकर स्तंब्ध रह गए, मंदिर के तहखाने में गहनें, मुकुट, मूर्तियां और रोजाना इस्तेमाल किए जाने बर्तन थे | लेकिन ये सब चीज सोने थे और इनमें नगीने भी लगे हुए थे, तहखाने में मिले मिले इस खजानें की अंतर्राष्ट्रीय कीमत 22 अरब डॉलर बताई गयी थी | इस तहखाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त निर्देश दिए कि दूसरा तहखाना तभी खुलेगा जब पहले तहखाने में मिली सम्पति का सारा कागजी काम पूरा हो जाएगा, इस मंदिर के पुजारी के अनुसार दूसरे तहखाने में और भी बड़ा खजाना हैं | जिसकी रक्षा खुद ' नाग ' देवता करते है इस तहखाने को खोलने से भारी तबाही आ सकती हैं |
श्री मोक्कमबिका मंदिर, कर्नाटक :- भारत का यह मंदिर कर्नाटक के पश्चिमी घाट के कोल्लूरके नीचे की तरफ है, इस मंदिर की सालाना आय 17 करोड़ हैं | इस मंदिर के पुजारियों के अनुसार ' नाग ' का चिन्ह होने के कारण नीचे बहुत बड़ा खजाना बताया जाता है, यह ' नाग ' इस मंदिर को बाहरी ताकतों से बचाता हैं | अगर खजाने को छोड़ भी दे तो इस मंदिर में 100 करोड़ के गहने मौजूद हैं |
कृष्णा नदी का खजाना, आंध्रप्रदेश :- विश्व के सबसे बेहतरीन हीरों का खनन कृष्णा नदी के किनारे कोल्लूर में हुआ था, गोलकुंडा राज्य का यह भाग आज कृष्णा और गुंटूर जिलें में हैं | बताया जाता है कि आज भी वहां हीरे की बहुत बड़ी खेप वहां मौजूद है, विश्व का सबसे सूंदर कोहिनूर हीरा भी यही से प्राप्त हुआ था |
चारमीनार सुरंग, हैदराबाद :- बताया जाता है कि चारमीनार और गोलकुंडा को जोड़ने वाली सुरंग में बहुत बड़ा खजाना आज छुपा हुआ हैं | इतिहास के अनुसार इस सुरंग का निर्माण सुल्तान मोहम्मद कुली क़ुतुब शाह से शाही परिवार के लिए इसका निर्माण करवाया था | जिससे की जरूरत पड़ने पर वो कीलें से चारमीनार आसानी से जा सकें, 1936 में निजाम मीर उस्मान अली को एक रिपोर्ट भी दी गयी, मगर उन्होंने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए माना जाता हैं कि आज भी सुरंग में ख़जाना छिपा हुआ हैं |